Thousand Full Moon: Vishwambhur Nath Shrivastav ‘Bhola’ (85+)
Contributed by: Shree Devi Kumar
A splendid account of a miraculous event that took place
many years ago in Shri.
Vishwambhur Nath Shrivastav ‘Bhola’s life. The narration is in Hindi and has
been posted as is for the reading pleasure of those who understand the
language. For others here is a brief summary:
In 1975-1976 Bholaji was posted in a newly independent country. He was required to represent the Indian High Commissioner at an
event that he later learned was a ground breaking ceremony for a cattle
slaughter plant. As the chief guest at the event his first task was to kill a cow
with the ‘newly procured’ weapon that had attachments that were designed to
minimize the animal’s pain. Sensing his reluctance his host performed the
dreaded act himself but then asked Bholaji to skin the dead cow with another
newly acquired gadget. Being a diplomat responsible for bilateral relations between
the two countries Bholaji reluctantly proceeded towards the cow with the new
gadget in his hand, desperately praying and looking for a way to get out of
this ordeal. As he proceeded he heard a voice of a young boy calling out to him.
The unusual looking boy repeatedly pleaded with Bholaji to allow him to do the
task of skinning the cow. Bholaji was very grateful to get out of the tricky
situation in an amicable way. The locals applauded the boy and the organizers
promised to give him a job at the new plant. Bholaji wanted to meet the boy but
the boy was nowhere to be found in spite of a lot of efforts by the Governor
and his officials.
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आज से ८५ वर्ष पूर्व जन्मे इस जीव की मानव काया को लोग प्यार से
"भोला" नाम से पुकारते हैं ! गिनती में एक हजार से कहीं अधिक
पूर्णमासी तथा उतने ही अमावस्याओं का "सुख" इस नश्वर काया ने तथा उतना
ही "आनंद" इस हाड-मांस से ढके 'पवित्र जीवात्मा' ने परम पिता परमात्मा की अहेतुकी कृपा से
पाया है !
इस आलेख में, अपने जीवन के अनेक सुखद आनंदपूर्ण अदभुत संस्मरणों में से कौन सा एक आपको सुनाऊँ यह
निश्चित कर पाना कठिन है ! पर प्रयत्न करता हूँ .
यूँ तो मेरे और आप के जीवन का एक एक पल प्यारे प्रभु की
अहेतुकी कृपा का दर्शन करवाता है लेकिन प्रत्येक जीवन में कुछ एक ऐसे अवसर अवश्य
आते हैं कुछ ऐसी घटनाएँ अवश्य होती हैं, जिनमें सद्गुरुजन की शुभ
कामनाएं युक्त आशीर्वाद एवं परम पिता परमात्मा की अहेतुकी कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन
होते हैं ! इस निवेदक का जीवन ऐसे अनगिनत दृष्टान्तों से भर पूर है जिनमे उसे लगता
है कि जैसे उसके इष्टदेव ने स्वयम उसे अपने उत्संग में लेकर उसको चिंता मुक्त कर
दिया है !
पाठक गण एक कथा ही सुनाउंगा आपको प्यारे प्रभु की इस निवेदक
पर कृपा की !
वर्षों पुरानी बात है, १९७५-७६ की !
प्रियजन, उन दिनों मैं विदेश मे पोस्टेड था !
एक मध्य रात्रि मुझे उस देश मे
भारत के राजदूत महोदय का एक सन्देश मिला !
आदेशानुसार मुझे किसी आवश्यक कार्य के लिये अगली सुबह ही उस देश के उद्योग मन्त्री के साथ सुदूर दक्षिण के
एक प्रदेश मे टूर पर जाना था।
हाई कमिशनर साहेब ने काम की
अहमियत समझाते हुए उस देश के साथ अपने देश की कथित घनिष्ठता पर विशेष प्रकाश डाला और यह भी बताया कि
वास्तव में उस टूर पर स्वयम उनको जाना था और मेरे लिए ये बड़े इज्ज़त की बात
थी कि मुझे यह काम करने का सुनहरा अवसर मिल रहा था !
पिछडा देश था वह, कुछ समय पूर्व ही विदेशी
शासन से मुक्त हुआ था ! तब तक न उनकी कोई हवाई सेना थी, न
कोई नागरिक एविएशन विभाग !
पूरे देश में केवल एक वायुयान था, वह भी विश्वयुद्ध दो का
बुरी तरह मार खाया रिजेक्टेड , पुराने शासकों से खैरात में
मिला, भारी भरकम डकोटा !
राजधानी से गंतव्य तक की यात्रा उस लडखडाते बूढे जहाज़ पर
कैसे हुई,
उसका विवरण यहाँ नहीं दे रहा हूँ, परन्तु इतना
अवश्य बताउंगा कि यदि हमारे सद्गुरुजन के वरद हाथ इस निवेदक के माथे पर न होते तथा
प्यारे परमपिता ने उस हवाई यात्रा में उस पर अपनी अहेतुकी कृपा की अमृत वर्षा न की
होती तो आज वह यह वृत्तान्त लिखने को इस संसार में न होता !
चलिए किसी भांति यात्रा संपन्न हो गयी , हम गंतव्य
पहुँच गये गवर्नर्स हाउस में हमारे ठहरने की व्यवस्था थी ! मुंह हाथ धोकर ह्म तुरत ही वहाँ गये जहाँ वह विशेष कार्यक्रम
होने वाला था जिसमें भारत के राजदूत को अध्यक्षता करनी थी और सौभाग्य
अथवा दुर्भाग्यवश वह कार्य अब मेरे कंधे पर डाल दिया गया था।
एक बडा पंडाल था जिसमे सुन्दर बैनर्स और कागज़ की रंग बिरंगी झंडियाँ लगी थी , खाने पीने के लिए टेबल कुरसियाँ बाकायदा मौजूद थीं! एक स्टेज बना था जिस पर मुख्य अतिथि तथा
मिनिस्टर और प्रादेशिक गवर्नर आदि के बैठने की व्यवस्था थी !
ह्मारे पहुचते ही पब्लिक एड्रेस सिस्टम पर बार बार एलान होने लगा क़ि
कार्यक्रम शीघ्र ही शुरू होने वाला है !
स्टेज के आगे नीचे जमीन पर लाल नीली यूनिफ़ोर्म में पोलिस के सिपाही अपने चमचमाते बेंड पर झूम झूम कर अति मधुर एंग्लो एफ्रिकन धुने बजाने लगे ! माहौल ऐसा था जैसे किसी के विवाह का आयोजन हो !
बेंड की टंकार भरी धुनें सुनते हुए हम ऊपर स्टेज पर लाये गये ! बड़े आदर सत्कार सहित मुझे चीफ गेस्ट की बीच वाली ऊंची
कुर्सी पर बैठाया गया! मेरा औपचारिक स्वागत
हुआ , ताज़े फूलों का एक सुंदर
बूके प्रदान किया गया ! मैं ये समझ नहीं पा रहा था क़ि मुझे उतना आदर-सम्मान किस कारण मिल रहा है ! लेकिन उस
समय वह सब बहुत अच्छा लग रहा था !
इतनी प्रतिष्ठा अनायास ही मेरी झोली में
पड़ रही थी ! परम पिता की इस विशेष अनुकम्पा के लिए मैं मन ही मन उनका स्मरण करके उन्हें धन्यवाद दे रहा था ! पर मुझे तब तक यह
नहीं ज्ञात था क़ि मुझे वहाँ कौनसा विशेष कार्य करना है ! इस कारण यह भी डर लग रहा
था क़ि कहीं मुझे "बलि का बकरा" तो नहीं बनाया जा रहा है !
अभी मैं "बलि के बकरे" वाली बात सोच ही रहा था क़ि मिनिस्टर साहेब ने
अपनी तकरीर में एलान कर दिया क़ि "ब्रिटिश और भारत
सरकारों के आर्थिक और तकनीकी मदद से देश की जनता को खाने के लिए उत्तम क्वालिटी का हाइजीनिक साफ़ सुथरा
पशु-मांस उपलब्ध कराने के लिए एक आधुनिक उपकरणों से
युक्त नया Slaughter House, उसी स्थान पर बनेगा जहाँ ह्म उस समय बैठे थे ! इस बूचर खाने में पशुओं पर कोई अत्याचार नही होग़ा और जानवरों को कम से कम कष्ट देकर , सुन्न (बेहोश) करने के बाद उनकी खाल उतारी जायेगी.
तत् पश्चात बगल की मेज़ पर रखा रंगीन गिफ्ट पेपर मे लिपटा
बड़ा सा डिब्बा मंगवाया
गया और प्रादेशिक गवर्नर महोदय ने उसका रिबन काटा ! डिब्बा खुला तो
उसमे इंग्लॅण्ड की बनी हुई “बी एस ऐ” की एक , एक नली शिकारी बन्दूक और एक ऐसा यंत्र निकला जिसमे से हवा का जेट बहुत ही वेग के साथ निकलता था
!
इन दोनों यंत्रों को प्रदर्शित करने के बाद मंत्री महोदय ने
मेरी ओर देख कर मुस्कुराते हुए मुझसे कहा , "नाऊ कॉमरेड श्रीवास्तव, यूं मे
टेक ओवर " मुझे धीरे धीरे विश्वास हो रहा था क़ि अवश्य ही मुझे
"बलि का बकरा" बनाया जा रहा है !
मिनिस्टर
महोदय का एलान सुन कर मैं अन्तर तक काँप गया था ! उनका अनुरोध था क़ि मैं उस विशेष
"गन" में गोली भर कर नीचे पंडाल के दूसरे छोर पर खूटे से कसके बंधी उस
प्यारी प्यारी गाय को हलाल करूं !
प्यारे स्वजनों ! यह जीवन बड़ा विचित्र है , यहाँ
किसी की अपनी नही चलती , यहाँ वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है !
हमे जब जो भी करने का आदेश ऊपर मुख्यालय
से मिले उसका पालन करना ही पड़ता है !
मैं उस समारोह में अपने देश के राजदूत को रिप्रेज़ेन्ट कर रहा था! इस
स्थिति में मुझे मंत्री महोदय की बात टालना अनुचित लग रहा था ! मुख से कुछ बोल न सका पर शायद मेरे
चेहरे की विक्रति
कुछ बोल गयी ! मेरी बगल की कुर्सी पर बैठे प्रादेशिक गवर्नर महोदय
ने मेरे मन का भाव जान लिया और उन्होंने मिनिस्टर के कान में कुछ कहा ! मैं तब
समझा जब माइक उठा कर मिनिस्टर महोदय ने कहा “ ओके, ओके,
आई शेल परफोर्म दिस !
मेरे हाथ से गन लेकर उन्होंने उस प्यारी प्यारी गौ माता को
जीवन मुक्त कर दिया ! गौ मा की सुंदर अघ्खुली आँखे आज भी मुझे मेरी अम्मा की उन
प्यार भरी आँखों की याद दिलाती है जिनसे निहार कर उन्होंने १९६२ में अपने जीवन के
अंतिम दिन मुझे आशीर्वाद दिया था !
प्यारे प्रभु की अहेतुकी कृपा से , गौ मा की
हत्या के अपराध से बच गया ! दूसरा संकट अभी शेष था ! मिनिस्टर साहब ने दूसरा एलान
कर दिया “ अब इंडियन एक्सपर्ट इस यंत्र द्वारा इस गाय की खाल उतार कर बताएंगे “
पाठकजन ! मैंने इससे पहिले कभी वह मशीन देखी भी नही
थी , चलाना तो दूर की बात है !
उसके साथ के कागज़ जल्दी जल्दी पढ़ कर मैंने जाना क़ि वह यंत्र , पशुओं की खाल उतारने के लिए उस विकसित देश में हाल में ही बना है और उसका प्रेक्टिकल ट्रायल करने के लिए उसे पिछड़े देशों में
भेजा जा रहा है ! "मैं कैसे करूँगा यह ?" ! मैं भयंकर धर्म संकट में पड़ गया था ! मैं जो
काम करने जा रहा था , मैंने अपने इस जीवन में , वैसा
कार्य पहिले कभी नहीं किया था!
सच पूछिए तो मैंने किसी और को भी वैसा काम करते कभी नहीं देखा था !
बिजली के तार से वह यंत्र पावर पॉइंट से जोड़ दिया गया और मैं वह यंत्र हाथ में ले कर स्टेज से नीचे उतरा ! उस समय मेरे मन में भयंकर संघर्ष हो रहा था. मैं मन ही मन अर्जुन की भांति अपने प्रियतम प्रभु से प्रार्थना कर रहा था
आया शरण हूँ आपकी मैं शिष्य शिक्षा दीजिए
निश्चित कहो कल्याण कारी कर्म क्या मेरे लिए
निश्चित कहो कल्याण कारी कर्म क्या मेरे लिए
और तुरंत ही कृपा हुई !
आठ दस कदम ही बढ़ पाया हूंगा क़ि कानों में किसी बच्चे की मीठी आवाज़ पड़ी ! ऐसा लगा
जैसे कोई छोटा बच्चा पीछे से किसी अपने को पुकार रहा है ! मुझे कौन पुकारेगा ? यह सोच कर मैंने उसकी पुकार अनसुनी कर दी और धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा ! पर उसने मेरा पीछा न छोड़ा !
शायद वह मुझसे ही कुछ कहना चाहता
है, यह सोच कर
मैं रुक गया ! पीछे मुड़ कर देखा तो लगभग ३ फुट ऊंचा ७-८ साल का एक बालक मेरे पीछे खड़ा
था ! खाकी निकर और हाफ शर्ट पहने ! एक अनोखे रंग रूप वाला वह बच्चा न तो योरोपियन लग रहा था न एशियन अमरीकी रेड इंडियन और न भारतीय !
मैं उससे पूछने ही वाला था क़ि वह मुझे क्यों पुकार रहा था
क़ि उसने मेरी ओर हाथ फैला कर उस आयातित नये यंत्र को मुझसे मांगा ,
जैसे
कोई छोटा बच्चा , नया खिलौना देख कर उससे खेलने के लिए मचलता है !
हताशा और अवसाद भरे उन क्षणों में मुझे उस बालक का इस प्रकार मुझसे वह यंत्र मांगना बड़ा अटपटा लग
रहा था ! वह बालक शायद मेरे मन के भाव समझ गया !
मेरे और निकट आकर उसने अंग्रेज़ी भाषा में मुझसे कहा “ Sir, Pass that on to me, I
shall do it for you " और उसने बार बार अपना यह अनुरोध दुहराया ,
सर
मुझे दे दीजिये ये मशीन ! मैं आपकी ओर से इसे चला कर दिखाऊंगा , मेरा विश्वास करिये , मैं
इसे चलाना जानता हूँ " I
shall do it for you, I know how to operate this machine . Sir Believe me , I can do it " मुझे उसकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था ! जो यंत्र योरप में
इसी वर्ष बना और यहाँ आज ही आया उसे
इस छोटे से बच्चे ने कब और कहां देखा और चलाया होग़ा ? लेकिन उसकी आँखों की विचित्र चमक मे निहित उसके अदम्य
आत्म-विश्वास ने मुझे यह सोचने पर मजबूर
कर दिया क़ि मैं उसपर भरोसा कर सकता
हूँ !
बालक शायद मेरी असमंजसता भांप गया !
उसने नीचे से मेरा शर्टजेक खेंच कर एकबार फिर गिडगिडाते हुए कहा कि मैं उसे वह
यंत्र चलाने दूँ वह मुझे निराश नहीं करेगा !
("Let me do that for you
Sir. I shall not betray your confidence " )कुछ पल रुक कर वह फिर बोला कि शायद मुझे विश्वास नहीं हो
रहा है उसने वह यंत्र पास के एक देश में बखूबी चलाया है !
("Seems you don't
believe me Sir I have worked with this machine for months in the country down
south " ) इसके साथ ही उसने वह मशीन मुझसे झपट कर ले ली ( बिलकुल वैसे ही , जैसे नाती- पोते अपने बाबा-दादी से और मथुरा
वृन्दावन के बन्दर भक्तों से प्रसाद झपट लेते
हैं )! एक झटके में ह़ी उसने मशीन का स्विच ऑन कर दिया , मशीन
पावर पॉइंट से कनेक्टेड थी , चल पड़ी ! तुरत ही स्विच ऑफ कर के उसने मशीन
मुझे लौटा दी और मेरी आँखों में देखते हुए जैसे प्रश्न किया कि अब भी विश्वास हुआ या नहीं ? ("Do you believe me now Sir
"? मैं
अवाक् था , मुझे विश्वास हो गया कि वह
अवश्य ही कोई असाधारण बालक है!
उसकी वाणी और उसकी आँखों की चमक में एक असाधारण चारित्रिक बल और अदम्य आत्मविश्वास झलक रहा था ! सम्मोहित सा होकर मैंने स्टेज से माइक मंगवाया और यह एलान कर दिया कि बड़ी सौभाग्य की बात है कि उस देश का ही एक नन्हा नागरिक वह काम कर दिखाना चाहता है जिसके लिए मुझे आमंत्रित किया गया है , उसे अवसर देना चाहिए !
उसकी वाणी और उसकी आँखों की चमक में एक असाधारण चारित्रिक बल और अदम्य आत्मविश्वास झलक रहा था ! सम्मोहित सा होकर मैंने स्टेज से माइक मंगवाया और यह एलान कर दिया कि बड़ी सौभाग्य की बात है कि उस देश का ही एक नन्हा नागरिक वह काम कर दिखाना चाहता है जिसके लिए मुझे आमंत्रित किया गया है , उसे अवसर देना चाहिए !
(" Comrades
! It is a matter of great pride and honour for this country that we have amongst
us, a young man who is offering to demonstrate the working of this newly
imported machine and I feel we should not deny him this honour . May I with your approval Comrades pass on the
machine to him ") तालियाँ बजीं , सब
प्रसन्न थे कि जिस कार्य के लिए विदेशी एक्सपर्ट बुलाये गये थे वही कार्य उस देश का एक बच्चा करने जा रहा था !
बालक ने बड़ी कुशलता से मशीन चलाई ! एक बार फिर तालियों की आवाज़ से सभा गृह गूँज उठा ! जनता ने उस बालक को घेर लिया और मिनिस्टर साहेब ने सम्बंधित सरकारी विभाग को आदेश दिया कि बन जाने के बाद नये स्लौटर हाउस में उस होनहार बालक को उचित नौकरी दी जाये !
बालक ने बड़ी कुशलता से मशीन चलाई ! एक बार फिर तालियों की आवाज़ से सभा गृह गूँज उठा ! जनता ने उस बालक को घेर लिया और मिनिस्टर साहेब ने सम्बंधित सरकारी विभाग को आदेश दिया कि बन जाने के बाद नये स्लौटर हाउस में उस होनहार बालक को उचित नौकरी दी जाये !
बेंड एक बार फिर बजा ,
पूरे
जोशोखरोश के साथ नाच गाना हुआ! सब मस्ती
में झूम रहे थे! मेरी निगाह ,
जनता
की भीड़ में उस नन्हे फ़रिश्ते को खोज रही थी! पर वह कहीं नहीं दिखा ! स्थानीय
अधिकारियों ने उसे ढूढ़ निकालने का वादा किया
!
तीन फुट का वह नन्हा फरिश्ता जो काले बादलों में छुपी बिजली की भांति बस एक बार आकाश से उतरा , मुझे मेरे धर्म संकट से उबारा और फिर उसी
शीघ्रता से कहीं और चला गया ! जो हुआ सब मेरी आँखों के सामने हुआ फिर भी मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं सपना देख रहा हूँ ! मुझे अपनी आँखों
पर ही विश्वास नहीं हो रहा था !
देखें आगे और क्या होने को है!
उस विलक्षण बालक ने मेरे मन में छिड़ा "भावना - कर्त्तव्य" युद्ध तत्काल शांत कर दिया था ! उसने न जाने कहां से अकस्मात प्रगट हो कर खेल खेल में वह काम कर दिया था जो कि वास्तव में मुझे करना था और जिसे मैं अपने संस्कार और आस्था के बंधन के
कारण नहीं करना चाहता था! उस काम को कर के उसने न केवल मुझे अकर्मण्यता के अपमान से बचाया था बल्कि उसने हमारी भारत सरकार को भी वहाँ की सरकार के साथ हुए द्विपक्षीय समझौता भंग करने का गुनहगार
होने से बचा लिया !
उसके इन उपकारों के कारण मैं हृदय से उसका अति आभारी बन गया था ! पर विडम्बना तो देखिये कि न तो मैं उसे धन्यवाद दे पाया और न किसी प्रकार मैं उससे अपना आभार प्रगट कर सका क्यूंकि वह वहाँ से अचानक अदृश्य हो गया था ! मैंने
अपने प्रोजेक्ट कोऔरडिनेटर
से उसे ढूँढने को कहा जिससे ह्म उसका सम्मान करते हुए वहाँ की
सरकार से उसे कुछ पारतोषिक दिलवा सकें !
पर ह्मारे सारे प्रयास निष्फल रहे! वह कहीं नहीं मिला ! मैं ह़ी क्यों वहाँ
के गवर्नर और अन्य अधिकारीगण भी उसे ढूँढने में असमर्थ रहे और आश्चर्यचकित रह गये
!
अवश्य ही आप भी कुछ मेरी तरह ही चकरा गये होंगे सोच में पड़ गये होंगे कि आखिर
वह था कौन ? प्रियजन ! शरणागत वत्सल
कृपा निधान इष्ट देव ने अवश्य ही मेरी पुकार सुनकर मेरी सहायता के लिए यह नन्हा फ़रिश्ता
धरती पर उतारा था !
मेरा तो यह दृढ विश्वास है !
आप भी विश्वास करें ! मुझ पर नही, परमपिता
की समग्र मानवता पर अहेतुकी कृपा पर !
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